Anju Dixit

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जान लेगी यह लड़की

कितनी मासूम सी सारे जमाने से अनजान अपने मे ही खोई खोई
घुंघराले घने बालों बाली , सादा सिंपल कोई भी  देखे दिल हार जाये।
पर यह दिल बिल लगाना  उसके बस की बात न थी  क्योंकि ऐसा कुछभी वो करना नहीं चाहती थी जो मुकम्मल न हो सके।
पढ़ना और सिर्फ पढ़ना यही शौक था उसका।
जीवन में हर तरफ खुशियां ही खुशियां थी , कहीं कुछ इत्ता सा भी गड़बड़ न था। मस्त साबन सी बरखा की झूमती बेलों सी मदमस्त लाइफ और जीने को क्या चाहिए
नाम था प्रिया  ,नाम ही नही वैसे थी भी सबको प्रिय ,सबके दर्द उसके अपने थे सबके आँसू उसका दिल पिघला देते , खुशी भले ही न बांट पाये पर सारे जमाने के दर्द अपने थे ,अपनों के लिए नहीं जमाने के भी गम बाँटना उसकी आदत में सुमार था ,भावुकता से पूर्ण।
पर कहते हैं कभी कभी तकदीर को सुख रास नही आता कोई न कोई सबब आ ही जाता है दर्द बनने मुस्कुराहटों को आहों में बदलने।एक लंबा चौड़ा नौजवान उसे किताब की दुकान पर मिला  मुलाकात  बात में बदली एक किताब को लेकर जो दोनों को चाहिए थी ।
your mind your money, दोनों पढ़ने के इच्छुक लड़के ने कहा कोई नहीं आप पढ़ लो फिर कल या एक दो दिन मे दे देना या में आपके घर से ले लूंगा लड़की सकपकाई बोली मेरे घर से ...आपको कैसे पता मेरा घर????
वह बोला में आपके पड़ोस में किराए के मकान में रहता हूँ अच्छा फिर कोई मुश्किल नही ,आपको भी मेरी तरह किताबें पढ़नी पसन्द है ,
जी कहके दोनों चल दिये अब दोनों रास्ते भर साथ आये लड़का  आप क्या करती हो , पढ़ती हूँ घर का काम  और थोड़ा बहुत और भी कुछ।
पर लड़की औपचारिकता निभाती अपने घर तक आ गयी बात आई गयी हो गयी।
अक्सर वो अपनी लॉबी में बैठकर किताबें पड़ती कोई उसे नोटिस करता
पर वो बेखबर।
उसने दो दिन में बुक पूरी करके उसे दी सुबह पार्क में वो टहलते दिख गया वो भी जाती थी।
पढ़ ली आपने जी कैसी है आप खुद पढ़ लेना आप नही बताएंगी,
आकर्षण खत्म हो जाएगा।
जी अच्छा आप बुरा न माने तो आपका नाम जान सकता हूँ ,
जी मेरा नाम प्रिया है ,
वाह बहुत सुंदर है आपके जैसा ,
जी क्या बोला कुछ नहीं,फिर दोनों कभी पार्क कभी किताबों की दुकान  या अपनी अपनी छत पर टहलते मिल ही जाते और दो चार बातें भी हो जातीं।
प्रिया जी आप मेरी दोस्त बनोगी ,
जी नहीं मुझे यह  सब अच्छा नही लगता ,
इसमें बुराई क्या है,
मैने कहा न मिस्टर,
मिस्टर नही मेरा नाम आयुष है,
हैं जो भी हो,
अब  वो जब भी उसे दिखता वो कन्नी काट जाती पर वो तो उसके पीछे ही पड़ गया और जब तक उसने हां न कि माना ही नहीं।
दोनों घण्टों पार्क में बातें करते एक दूसरे को समझते ।
एक दिन उसने पूछा आप कहाँ से हो और यहां क्या करते हो ,
लड़के ने बताया वह फौजी है यहाँ पोस्टिंग आया है,
लड़की उससे इम्प्रेस हुई देश भक्त वो भी फौजी बहुत खूब,
अब दोनों में अच्छी पटती,
एक दिन सुबह का समय था मौसम बहुत मस्त लड़के ने झट से बोल दिया मुझे तुमसे प्यार हो गया प्रिया।
वह स्तब्ध थी क्या कहती भागकर घर चली आई।
दिल दिमाग मे जंग चल  गयी ।
फिर अगले दिन तुमने जबाब नहीं दिया।
मुझे नही होता प्यार प्लीज हम दोस्त हैं न ।
पर मुझे हो गया ,
तुम्हारा तुम जानो,
वह वापस आ गयी,
क्या करे मिलना कम कर दिया पर वो ठहरा सरफिरा मिल ही जाता कहीं
न कहीं,
एक दिन सुबह पार्क में बोलो न प्रिया ऐसे मत रहो न अब हो गया में क्या करूँ।
देखो आयुष मुझे नही होता प्यार पर हम अच्छे दोस्त  हैं,
चलो ठीक कोई नही मत करो हम दोस्त तो हैं न ,
जी, फिर दोनों ओर भी करीब आ गए  ,
उनकी सुबह शाम एक दूसरे के बिना मुश्किल थी।
उसे उससे प्यार था उसे दोस्ती,
जो भी था सारे सुख दुख साझे होने लगे।
वो इतना दीवाना ,उसका अंदाज दोस्ताना।
पर कहते हैं नजर लगते देर नहीं लगती,पता नही क्यों वो उससे रुडली रहने लगा।
यह बात उसे अच्छी नही लगती पर क्या करे क्या बजह है पूछती पर वो नही बताता ,व्यहार और भी रूढ़ होता जाता।
वह ठहरी भावुक वो एक स्ट्रांग बन्दा।
वो कुछ भी कहती वो उल्टा जबाब देता।
एक दिन हद हो गयी  बहुत कुछ कह दिया तुम मेरा प्यार नही मेरी जिद थी पागल लड़की स्तब्ध   इतना असर हुआ कि दिल  धड़कना ही भूल गया साँसे रफ्तार की जगह मन्द होने लगीं।
फिर भी उसके जहन पर वो ही तारी था उसने अपनी हालत की परवाह न करते हुए उसे कॉल की उसने बामुश्किल फोन उठाया आयुष हां सुनो मेरी बात...बोलो मेरी तबियत बहुत खराब है मुझे कुछ हो रहा है तुम कोई कॉल मैसिज नही करना,
पर तुझे क्या हुआ प्रिया ऐसे क्यों कर रही है मेरी बजह से हुआ दिल पे ले गयी मेरी बात पागल में तो यों ही कह रहा था,
में तुझसे बहुत प्यार करता हूँ,
अरे वो छोड़ो मेरी सुनो काल नही करना अगर में लौट आई तो में ही करुँगी तुझे मेरी कसम ,
सुन तो प्रिया अब कुछ नही आयुष मम्मी आ गयी फोन काट दिया,
कुछ पल में नजारा बदल गया वो हॉस्पिटल में पहुँच गयी बीपी लो नही
बिल्कुल  डाउन सिर्फ 50,
जल्दी से ड्रिप लगायी वो खामोश उसके साथ सारे घरवाले ,क्या हुआ अभी तो ठीक थी।
पर वो बोलने बताने की स्थिति में नहीं।
कुछ समय बाद दवा का असर हुआ आहिस्ता से आँखे खोली सभी की जान में जान आई,
चार  घण्टों के बाद वह जिद करके घर आई डॉक्टर तो मना कर रहा था।
आके पहला काम ।
हेलो आयुष हां बोल कैसी है  मै ठीक हूँ तुझे क्या हुआ वो फिर अभी नहीं,
अरे बोल मेरी बजह से हुआ न नही आयुष छोड़ो में ठीक हूँ।
शाम को बताती हूँ।
रात का 10 बज गया न उसने हाल पूछा न हाय हेल्लो बोला।
ऐसा कभी नहीं हुआ वह परेशान हो उठी कितनी कॉल कितने मैसिज बस एक  भी जबाब  नहीं बस यही यहाँ नेट नही है।
मन को  समझाकर दवा लेकर न जाने कब नीद के पहलू में चली गयी।
सुबह काफी लेट उठी।
फिर कॉल मैसिज कितना कुछ लिखा पर कोई जबाब नहीं।
दोपहर हो गयी बस एक ही बात का जबाब मै बिजी हूँ तसल्ली हो गयी वो ठीक है।
शाम को कॉल की रिंग के बाद फोन उठा ।
उसने बड़े प्यार से पूछा ठीक हो बड़ा रुडली बोलो क्या है,
बात नही करनी , क्यों ,मूड नहीं।
क्या हुआ ,
कुछ नही,
बोलो न ।
में तुमसे बात कर रहा हूँ यह क्या कम समझ रही हो,
अहसान कर रहे हो।
हां,
इतने रुडली क्यों बात कर रहे,
छोड़ न बोल क्या कहना है।
क्यों गुस्सा हो,
मै नही होता ,मुझे टेशन नही चाहिए,
में टेंशन हूँ ,
बोला न नही चाहिये थोड़ा तेज होते हुए,
फिर इतने पास क्यों आये क्यों रुआँसी सी हो गयी बल्कि रोने लगी,
सॉरी हो जाती है कभी कभी गलती हो गयी।
मेरे साथ इतने दिन जो थे वो गलती थी हां।
उससे आगे कुछ भी सहने सुनने की हिम्मत न थी।
बस एक आँसुओ की लहर आई और डूब गयी वो।
की आवाजें कानों में गूँजने लगीं  प्रिय, सोना, बेबी,
पर दिल नही मानता  , दिमाग की ,
कहता है दिमाग साइड रख दो दिल की सुनो,
पर वो रुडली क्यों हुआ।
शायद यह सोचके गर इसे किसी दिन कुछ हो गया तो मुझे मरवायेगी यह लड़की।
ब कोई इसका फोन देखेगा मेरा नाम या नम्बर आएगा।
मेरा तो सारा कैरियर बेकार हो जाएगा इस खेल के चक्कर में।
इसलिए सारा छोड़ अपनी सोच ।
बरना मरबायेगी यह लड़की।


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